किसान

किसान

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मुफलिसी तबस्सुम भी ढूंढ लाती हैं लेकिन,

भूखे पेट के लिए अनाज कहाँ ढूंढ पाती है।

अजी दो वक्त की रोटी तो छोड़िए,

थोड़ी इज़्ज़त भी उनके नसीब नहीं है।

हर आपदा का पहाड़ बन सामना करते हैं वो,

बदकिस्मती से फिर भी कोई उनके करीब नहीं है।


कोई रुपया,पैसा, धन, दौलत कमाने की चाह नहीं है उन्हें,

देश का अन्नदाता भुखा सो रहा है

तब भी कोई आह नहीं है उन्हें,

क्यों कोई कभी यह नहीं कहता की,

चलो आज उन्हें हम फ़ुरसत से देख आते है,

अगर कोई कहे कि मैं किसान बनुंगा तो छोटा सा ही

सही मगर बेशक हम उसका मज़ाक बनाते हैं।


जिंदगी झोंक देते हैं किसान धूल मिट्टी,

पसीने और अनाज उगाने में,

पर फिर भी न जाने क्यों लोग लगे पड़े हैं

गाँव को शहर बनाने में,

अब तो मैं जैसे किसानों की दरियादिली का कायल हो जाऊंगा,

और किसान जब चलेंगे खेतों में तो उनके सम्मान के लिए,

उनके पैरों की पायल हो जाऊंगा, इसलिए सुबह उठ कर,

सबसे पहले मैं किसानों को प्रणाम करता हूँ।

और ये बात अनकही ज़रूर है पर,

तहे दिल से मैं किसानों का सम्मान करता हूँ।


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