किसान का संघर्ष
किसान का संघर्ष
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ठिठुरती वो रात जिसमें,
खेत में सिंचाई करता था,
ठिठुरती ये रात जिसमें,
अपने हक़ की लड़ाई लड़ता।
अपनी फसल के हिस्से के पानी के लिए;
हर रात चिंता करता,
ये प्रशासन की पानी की बूंदे,
मेरे हौंसला को क्या डिगाएंगी,
मेरे हौसले से लड़ने,
मेरे देश सेवा में लगे हुए,
बेटे के हाथ में बंदूक थमाएगी।
मेरे संघर्ष को क्या समझेंगे,
बंजर शहरों वाले,
उनके घर तो अनाज की थैली,
कारोबारियों के कारखाने से आयेगी।
मेरे बच्चे की भूख फिर मुझसे सही ना जाएगी,
ये बेबसी मुझसे आत्महत्या करवाएगी।
मरना जब भी है,
तो क्यों ना हक़ के लिए लड़ता हुए मर जाऊं,
अपने नहीं तो क्या दूसरे बच्चों की,
भूख मिटा पाऊं।