खरी खोटी
खरी खोटी
ईट पे ईट रख दीवार जोड़ा था मैंने
ईट पे ईट ही पड़े थे ढह जाने के बाद!
ईट का क़ुसूर ना है,ना ही चूना रेत का,
सब तो बिलख रहे थे बर्बादी के बाद।।
आबादी की आवाज़ गूँजती हर जगह,
खामोश हो जाते क्यों , बर्बादी के बाद।।
हाथ पे हाथ धरे देखती रहती हुजूम,
होता क्यों ऐसा , हर हादसे के बाद।।
हाथ पे हाथ ना धरो आओ मिला लो हाथ,
अनेक हो जाते,एक से एक मिलने के बाद।।
ऐब तलाशना हो ,वो भी वक्त आएगा,
हिसाब लगा भी लोगे,दुकाँ बंद होने के बाद।।
कीचड़ उछालने में इतना मशगुल मगर,
मैले हो जाते हाथ कीचड़ उछालने के बाद।।
निशाना सही नहीं है तेरी तुम भी जानते मगर,
निशाना लग भी सकता तीर छूट जाने के बाद।।
सोच लो तो अच्छा कदम बढ़ाने से पहले
पछताना क्यों भला , अंजाम आने के बाद।
