खिड़कियाँ
खिड़कियाँ
1 min
392
ये बेहिसाब सी खिड़कियाँ
क्यूँ न हम इनमें से थोड़ा सा झऀक ले
अपने हिस्से का आसमान नाप ले
ये दरवाज़ा तो नहीं है मगर
एक उम्मीद का झोंका देती है मगर
जहाँ से थोड़ी धूप छांट ले
थोड़ी बारिश की बूँद बांट ले
ये खिड़कियाँ ही तो है जो हमे,
चाय के साथ बैठने पर मजबूर करती है
वरना हम को हमारे लिए,
भी कहाँ फुर्सत मिलती है
सुकून दे जाती है ये खिड़कियाँ
ये बेहिसाब सी खिड़कियाँ ....