परिंदों का राग मौसमों का वैराग बादल की आवारगी बूँदों की सिसकियाँ परिंदों का राग मौसमों का वैराग बादल की आवारगी बूँदों की सिसकियाँ
खुला घर ना बरसों, वो खंडहर हुआ ना लगी धूप जिसको, ना पानी हवा। खोल दो खिड़की, ठंडी हवा आने दो लगे ... खुला घर ना बरसों, वो खंडहर हुआ ना लगी धूप जिसको, ना पानी हवा। खोल दो खिड़की, ठ...
वो हर शाम को ढ़लता हुआ वो हर शाम को ढ़लता हुआ
खिड़कियाँ खुश हैं.... की अब कोई उन्हें भी तकेगा ।। खिड़कियाँ खुश हैं.... की अब कोई उन्हें भी तकेगा ।।
चाय के साथ बैठने पर मजबूर करती है चाय के साथ बैठने पर मजबूर करती है