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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Inspirational

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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Inspirational

खेल दिवस पर विशेष

खेल दिवस पर विशेष

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खेल में नहीं होता हैं कोई हिन्दू मुसलमान

खेल में नहीं होता है ऊँचा, नीचा, महान

खेल हैं सद्भावना मिल जाता हैं जिसमें सभी

खेल में बन जाता हैं इंसान बस इंसान


खेलने वालों ने दुनिया एक कर दी खेलकर

खेल में रख दिया मन का गांठ खोलकर

मिटा दिया नफ़रत, बुराई, इंसान के दिमाग से

खेल ख़ुदा सा कर दिया संसार को सब एककर


खेलने चलो सभी धर्म ज्ञान छोड़कर

हिंसा, नफ़रत, बवाल की बयान सब छोड़कर

धर्म, मज़हब, जात में संसार कुरुक्षेत्र हैं

जन्नत बनाने के लिए आ जाओ खिलाड़ी बनकर


भय, दुःख, शोक का खेल ही उपचार हैं

काम, क्रोध, रोग का खेल ही निदान हैं

मोक्ष, मुक्ति का जगह खेल का मैदान हैं

स्वस्थ तन, मन का खेल ही परिणाम हैं


खेल में विकार दूर होता हैं मन का सभी

खेल में विकास पूरा होता हैं तन का सभी

भाव, भावना, प्रेम जगाती हैं खेल ऐसी की

खेल के मैदान में हर कोई मित्र होता हैं सभी


खेल में सब एक हैं मतभेद भाव भूलकर

खेलते मैदान में जैसे पानी में शक्कर घुलकर

भाव प्रेरणा जगाते हैं सब देखने वालों की

तुम भी संसार में रहो इंसान सिर्फ बनकर


नहीं जीत हार ज़िंदगी खेल ने बता दिया

मिलकर गलें एक दूसरे से बाद में दिखा दिया

मैदान यदि संसार सब खेल का हो जाये तो

प्रेम एक मिलन की गंगा खेल ने बहा दिया ।।



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