कच्चे मकान
कच्चे मकान
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घर से बहुत दूर चले गए हैं
लोग मेरे गाँव के,
बूढ़े माँ-बाप को छोड़ गए हैं
लोग मेरे गाँव के।
रोज़गार-ए-तमन्ना ने अपनों को
अपनों से अलग कर दिया
कच्चे मकानों को पक्का
करने चले गए हैं
लोग मेरे गाँव के।
अपना वज़ूद बनाने की खातिर
वर्षो की नींव को भूल गए है
शहर की भीड़ में गुम हो गए हैं
लोग मेरे गाँव के।
गाँव में कच्चे मकान थे
पर सर पर छत तो था
शहरों में फुटपाथ पर
रहने को मज़बूर हो गए हैं
लोग मेरे गाँव के।
सियासत ने ऐसी चाल चली
की सबको बेघर कर दिया
कभी इधर से तो कभी उधर से
भगाये जा रहे हैं
लोग मेरे गाँव के।