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Pratima Devi

Others

4.7  

Pratima Devi

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कब सुबह, कब शाम होगी---

कब सुबह, कब शाम होगी---

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336


ग़र बेमौसम बरसात ही, हराम होगी। 

न जाने किसके, सफ़र के नाम होगी। 


बदल रही है, ये राहें भी मंज़िलों की।
न जाने कैसे यह रोटी, ईनाम होगी। 


गर ये सिलसिला, यूँ ही चलता रहा।

न जाने कब सुबह, कब शाम होगी।


ख़्वाब बेबस, वो ख़्याल खलता रहा।

न जाने क्यों ये ज़िंदगी, बेनाम होगी।


ग़र आसमान ख़ुला, ज़मीं रोती रही।

न जाने कैसे, गलतियाँ तमाम होगी।


हरसू टूटता ऐतबार, रिश्ते तड़प रहे।

न जाने कौन-सी, बारात आम होगी।


सजी कहीं दावतें, कहीं भूख मिली।

न जाने कब ये रोटी, एहतराम होगी।


क्यूँ सजते बाज़ार, अब झूठ के यहाँ।

न जाने किसकी, ये नज़र राम होगी।


आज जलती है चिता, सत्य की यहाँ।

न जाने किस पर, वह इल्ज़ाम होगी।


हवाओं में भी अब, ज़हर घुल चुका।

न जाने कब, यह बहार पयाम होगी।


नीरस वह पल, हसरतों से देख रहा।

न जाने कब खुशनुमा, आवाम होगी।

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