कब सुबह, कब शाम होगी---
कब सुबह, कब शाम होगी---
ग़र बेमौसम बरसात ही, हराम होगी।
न जाने किसके, सफ़र के नाम होगी।
बदल रही है, ये राहें भी मंज़िलों की।
न जाने कैसे यह रोटी, ईनाम होगी।
गर ये सिलसिला, यूँ ही चलता रहा।
न जाने कब सुबह, कब शाम होगी।
ख़्वाब बेबस, वो ख़्याल खलता रहा।
न जाने क्यों ये ज़िंदगी, बेनाम होगी।
ग़र आसमान ख़ुला, ज़मीं रोती रही।
न जाने कैसे, गलतियाँ तमाम होगी।
हरसू टूटता ऐतबार, रिश्ते तड़प रहे।
न जाने कौन-सी, बारात आम होगी।
सजी कहीं दावतें, कहीं भूख मिली।
न जाने कब ये रोटी, एहतराम होगी।
क्यूँ सजते बाज़ार, अब झूठ के यहाँ।
न जाने किसकी, ये नज़र राम होगी।
आज जलती है चिता, सत्य की यहाँ।
न जाने किस पर, वह इल्ज़ाम होगी।
हवाओं में भी अब, ज़हर घुल चुका।
न जाने कब, यह बहार पयाम होगी।
नीरस वह पल, हसरतों से देख रहा।
न जाने कब खुशनुमा, आवाम होगी।
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