STORYMIRROR

कौन था वो?

कौन था वो?

1 min
322


रोज़ की तरह मैं फिर उठा

उठकर बस शायरी ढूंढने लगा

आज क्या लिखा होगा उसने

सोच कर बेचैनी का पारा बढ़ता रहा


वो शायरियाँ नहीं सच्चाइयाँ होती थी

ज़िन्दगी से जुड़ी उसमे बात होती थी

हर शख़्स का वो आईना होती थी

मायूसी में वो मुस्कान होती थी

टूटे सपनों की आवाज़ तो कभी

टूटे दिल की आह होती थी


सच कहूं

चंद शब्दों को पढ़कर सुकून आता था

मैं अपना आज और कल उससे जोड़

पाता था

गहराइयाँ इतनी की कोई चाहे तो डूब

जाए


हकीक़त इतनी की कोई चाहे तो जी

जाए

लेकिन रात को फिर मैं निराश हो

जाता था

क्या करूँ कभी भी उन शायरी के नीचे

नाम न आता था


न जाने कौन लिखता था ज़िन्दगी

किसकी है ये दुआ या दावा

ख़ैर

मैं तो फिर उठकर

बस शायरी ढूंढता था...



Rate this content
Log in