" कैसी प्रगति "
" कैसी प्रगति "
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हम बढ़ रहे हैं
प्रगति की ओर
हरेक कल्पनाओं को साकार
करते हैं !
नयी दुनियां को
बसाने की होड़ लगी है !
एक सपना हमने
सच कर दिखया
अधिकारों का बोध
कराया हमने !
हर क्षेत्र में
कामयाबी हमारे कदम चूमे
पर हमारी सोच
हमारी मानसिकता
को हम बदल नहीं पाए !
नारी जो ज़माने
की शक्ति है
उसे लज्जित किया जाता है ,
समाज में
कुंठित किया जाता है !
फिर हम कहते हैं
बढ़ रहे हैं
प्रगति की ओर ?