काश
काश
काश ! होश में रहना न ही कभी सीखते,
बेहोश हो कर के ही बस उम्र भर जीते,
होशो हवास में रह कर के जो भी देखा,
नशे में होते तो शायद मलाल ही न करते।
इस अक्ल का क्या करें, सब कुछ समझे,
मगर हल कोसों दूर होगा, न समझ सके,
दिमाग के साथ दिल भी ऐसे ही दिया,
दिल से दिमाग का सफर दूर ही लगे।
जानते ही अन्जान ज़िन्दगी से हम बने रहे,
रहगुज़र में रहबर की तलाश करते रहे,
न मिला कोई तो वीराने में ही चलते रहे,
आस लिए बस तसव्वुर में ही जलते रहे।
दिवालिया हो कर के भी जश्न मनाते रहे,
ख्वाबों की दुनिया में बस जहाँ बसाते रहे,
आइने में न देखा चेहरा मैंने अपना कभी,
बस भ्रम में ही हर बार हम मुस्कुराते रहे।
समझ गए कि यहाँ दर्द छिपाना पड़ता है,
दुनिया को बस झूठ दिखाना पड़ता है,
सच का राज़ कहाँ, बस दिखावा चलता है,
क्या पता किसे, आशियाँ दिल का जलता है।
जलते रहें, बुझते रहेें चाहे बस बेहोश रहें,
क्या पता कौन सी हवा आग को भड़का जाए,
चिंगारी ही बस यों शोला बन जाए,
और मुझे ही जला कर के तबाह कर जाए।
काश ! होश में रहना न ही कभी सीखते,
बेहोश हो कर के ही बस उम्र भर जीते,
होशो हवास में रह कर के जो भी देखा,
नशे में होते तो शायद मलाल ही न करते।