कागज़ की कश्ती
कागज़ की कश्ती
काग़ज़ की कश्ती
कागज़ की कश्ती की क्या होती है
हस्ती,
कारीगरी उंगलियों की ऐसी कागज़ को जो बना दे कश्ती,
होती नियति देखो कैसी इसकी
ना मल्लाह और ना पतवार,
ना हिस्से में आएं कोई पोखर, तालाब और तटिनी,
बरसात की बूंदों से भरा भूखंड को समझ अपनी नियति,
बहती है किस्मत को बना संगिनी अपनी,
कागज़ की कश्ती की क्या होती है हस्ती,
जुदाई भूल कर अपनी यह कागज़ की कश्ती,
बनती है बचपन की सखी सच्ची,
ठहरे हुए पानी में नन्हे हाथों से जब छोड़ी जाती,
अपनी अल्पायु से वह नहीं घबराती,
एक मुस्कान खिलाकर मासूम चेहरों पर,
वह सदियों का सफ़र तय कर जाती,
बारिश की बूंदों से बचाते हुए अपनी हस्ती,
विलीन होकर बरसात के पानी में ही खो जाती,
बचपन की याद बन,
मस्तिष्क पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती,
कागज़ की कश्ती की कैसी है हस्ती,
बचपन का खेल बन, बचपन में ही खत्म हो जाती,
एक अल्हड़ खिलखिलाहट के लिए,
अपने को ही मिटा देती,
ऐसी है कागज़ की कश्ती की हस्ती।।