जल
जल
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जल पय अंबू या कहो पानी,
सृष्टि की आधार जीव की जननी !!
नीर तोय अंभ या कहो बारी,
नाम अनेक है विचित्र कहानी।।
उठे सागर से भाप बनकर,
खेलें गगन में बादल होकर !!
हवा के साथ-साथ उड़ता गया,
काली रंग में रंगा नभ की काया !!
बज्र गिरा कर आई सौदामिनी,
छम छम बरसे वर्षा रानी।
पहाड़ पे गिरे, झरना से चले
नदी में उछले सागर कु मिले !!
पत्तों को छूकर पेड़ों को चूमे,
ताल को भर के खेतों में खिले !!
सात सुरों में बह रहा है पानी,
अद्भुत मनोहर ए रागिनी ।।