जिंदगी
जिंदगी
ऐ जिंदगी तूने पूछा हमसे,
हमने क्या-क्या किया,
सांसे जिंदा होने का सबूत देती हैं
यह भी क्या कुछ कम है,
वह भी एक वक्त था,
सुकूँ से सोए रहते थे ,
अब तुझ से भागना भी चाहूं अगर
तो तू भागने भी नहीं देती है ,
बीते हुए लम्हों की कसक,
आज भी होती है,
आज के लम्हों की क्या बात करूं,
कपूर की तरह खुद फना होती है,
क्या दिन थे वो जब,
वक्त थम सा जाता था
चांद तारों से अक्सर,
रातों में बात होती थी,
अब स्याह
काली रातों में,
एक जुगनू भी नजर नहीं आता,
बस ख्वाबों में ही तुझसे,
मुलाकात होती है,
कहते हैं सब की दुनिया में ,
देने से खुशियां बढ़ती है ,
पर कितने आसमां बरस गए,
आंखों से क्यों खुशियां नहीं मिलती हैं,
पूछा मुकद्दर से जब कहा उसने ,
कर्म करो फल की चिंता मत करो ,
यह कर लिया वह कर लिया,
फिर भी कहा तुझे कुछ नहीं आता है,
जालिम वक्त भी ऐसा भारी है ,
की मौत भी हमें तरसाती है
सौतन सी हो गई है मौत,
हर रात आती, सुबह चली जाती है।