ज़िंदगी जी उठेगी
ज़िंदगी जी उठेगी
चलते चलो वक्त की रहगुज़र पर खड़ी होगी रौनक कहीं..
ये जो दिल में दर्द का बादल छाया है घना, भरनी तो होगी खुशियों की रोशनी..
कालजयी किस्से कह गए है मौसम हर शै का बदलता है, खिलेगी चाँदनी भी हर आँगन.
ये जो बे-नूर सा मंज़र पड़ा है दिशाओं की दहलीज़ पर होगी बारिश छन-छन सी कभी..
उदास नग्मों की तान छेड़ी है ज़िंदगी ने हमें सरगम जो भरनी है भोर सी उजली ज़िस्त में घणी..
रुकती नहीं रात तसम कितना घना हो सुबह के आगाज़ पर छंटती है हरदम अंधेरों की नमी..
आज भले ताश के पत्तों सी बिखर रही साँसों की लड़ी, कल रुख बदलेगी वक्त की घड़ी..
शौक़ को ज़िंदा रखो जीने की जिजीविषा को प्यार करो हारना नहीं हराना है को दोहराते रहो..
अभी मंज़र भले मौत का ठहरा समय के चलते ज़िंदगी भी अंगड़ाई लेकर उठेगी कभी।