जीवनोपयोगी
जीवनोपयोगी
जिनके सिर कर्जा नहीं, रंक भले वह होय।
ताको दुःख व्यापै नहीं, भले न पूंजी होय।।
जीवन में नर न करे, यदि कल्याण उपाय।
मरण काल में ते मनुज, बहुत बहुत पछताय।।
जो नर निज को कोसते, लेत भाग्य को नाम।
तिन्हँ पर कबहुँ न रीझते, मुरलीधर घनश्याम।।
बहुत पढ़ा रट पी गया, दर्शन वेद पुराण।
पर गुरु की किरपा बिना, मिटा न उर अज्ञान।।
व्यंग्य विषैले कटु वचन, क्रोध भरे मत बोल।
जिव्हा नौ रस खान है, प्रथम बुद्धि से तोल।।
लोचन की ज्योति बिना, कुछ बिगड़त नहिं काज।
ज्ञान नयन जो न मिले, बिगड़े कल और आज।।
आदर पावत वह नहीं, जो आदर नहिं देत।
विक्रम बीज बिना कभी, देत अन्न नहीं खेत।।
