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Mukesh Nirula

Others

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Mukesh Nirula

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जीवन से मोह

जीवन से मोह

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अंत समय तक वृक्ष से, रहा था जिन का मोह

सूख चुके हैं अंत की, बाट रहे हैं जोह


जब तक थे कोमल वो सभी, आते थे कुछ काम

अंत समय जब आ गया, क्यों हैं वो परेशान


ना दे पाते हैं वो छाया, ख़ुशबू भी है दूर

पत्तों फूलों को लगता है, इसमें उनका क्या कसूर


अंत समय में भी कभी, किया ना उसको याद

कैसे फिर सुन पाऐगा, वो उनकी फ़रियाद

 


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