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Vinay Singh

Abstract

3  

Vinay Singh

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जीवन फल

जीवन फल

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मार्ग मौत को, देना होगा

रिस्क मुझे अब, लेना होगा

बहुत सहारा, मैनें ढूंढा

खुद, अपनी नैया खेना होगा

कशमकश और दर्द भरे

दिन रात वो, आँखों का रोना

दिन थके, रात को स्वप्नों में

मेरे आ,आकर वो सोना


तंगी में मुझ को जीवन के

यूं छोड़ अकेले,चल देना

ज़ख्मों पे निर्दयता से तेरा,

नमक बहुत सा मल देना,

जीवन! तुझको मेरे प्रश्नों का?

हल बिल्कुल देना होगा!


रात अंधेरी घटाटोप

उजले में सब कुछ छिपा ओट

मन से मेरे कर दूर भी संधि

तन को मेरे, तूने रौंदा

फलदार वृक्ष की छाया मैं

कर दिया मुझे ठूंठा पौधा

क्षण क्षण तिल तिल मैं, रोज जला

तन से बोझिल, कब मन से चला

हर उडान थी, मेरी अपनी कब

हर मोड़ पे तेरा डेरा जब

हर एक स्वप्न का, ऐ जीवन

निश्चित हीं, हल देना होगा!


आशा की किरणें, दिखे रोज

खाली हाथों से, रहा खोज

उड़ान मेरा अंबर के उपर

गिर रहा भूमि पर, ठोकर खाकर

विस्तृत दीखता भूभाग मेरा

मुट्ठी में रहता, खाक भरा

मैं चलूं जिधर, जिस डगर जहाँ

खाली तृन पथ, भूखमरी वहाँ

जीवन तुझ को मैं खोज रहा

इस खोज का फल देना होगा!


बचपन में मैं, असहाय दिखा

वृद्धावस्था में, हाय दिखा

कुछ वक्त सफर में, मुश्किल के

जीवन के सब बोझा ढोना

खून के एक एक कतरे का

ब्याज सहित ऋण का चुकना

थक हार चुके हों,लाख मगर

मजबूरी में भी ना रुकना

फल लदे हुये, टूटे डालों सा

बिन चाहे हीं, मेरा झुकना

अंतिम स्वांसो तक, रमण तेरा

विस्तृत रहता है, भ्रमण तेरा,

जीवन तू इतना चंचल क्यों?

इस प्रश्न का हल देना होगा!

                      



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