जीवन-एक अंजान सफ़र
जीवन-एक अंजान सफ़र
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अजीब सी है जिंदगी
अनजान सफर जैसी
किस पल ये कैसा मोड़ ले
कब रास्ते ये जोड़ दे
कितने दरख्त मिल जाये
राह में पता नहीं
मयस्सर हो छांव जिसकी
वो पेड़ ही मिला नहीं
अजीब सी है शख़्सियत
इस ज़िन्दगी की दोस्तों
मुक़ाम हैं सामने खड़ा
पर रास्ते अंजान हैं
साये से मिलते फिरते हैं
रिश्ते यहाँ राह में
सीधी जो सर पे धूप हो
तो साथ छोड़ ये गए
अनजान से सफर में हम
अनजान बन के रह गए।
