जादूगर
जादूगर
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"आबरा का डाबरा "
कहते कहते
हाथ हवा में लहराता
कुछ होंठों में दुहराता
नए नए खेल दिखाता जाता
जादूगर
कभी
ज़ेब से फूल निकलता
कभी
रूमाल सुनहरा
कभी
सफ़ेद कबूतर उड़ते
कभी
कांधे पर बाज ठहरता
कभी
मंच पर दिखलाई देता
कभी
हमारे साथ बैठता
जादूगर
थके - थके मन सहलाता
परियों की बातें करता
सपनों के नए - नए जाल है बुनता
जादूगर।
