इस बार बचा लेना
इस बार बचा लेना
हे सखा !
व्यथित हूं मैं जानकर प्रेम की दशा ,
यहां अब न कृष्ण की सी लीला है
न राम वाली मां सीता हैं।
किस तरह मैं जीवन करूं यापन
इस मानव वन में,
जहां हृदय में सभी के अपार पीड़ा है
किंचित कोई कह बस दे कि
आस्तीन के सांपो से पाला न पड़ा हो,
प्रेम में डूबे को जो विष का प्याला न मिला हो।
सखा ! तुम ही मेरे इस आलाप से मुझे उबारो,
मित्रता सही मायने में तुम मुझसे निभा लो,
इक पवित्र यही रिश्ता मात्र मेरे पास है बचा,
अन्यथा जीवन है व्यर्थ की कथा।
इस बार इक क्षण को भी जो मैं बहक जाऊं,
इस प्रेम के मोहक उपवन में,
मेरे कृष्ण मेरी नैय्या पार लगा देना,
मुझे इस प्रपंच से इक बार तो बचा लेना।