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नविता यादव

Others

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नविता यादव

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इंसाफ की पुकार

इंसाफ की पुकार

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बाबा मैं तेरे आंगन की कली

तेरा गरुर, मां का सकून

भाइयों की लाड़ली, बहनों की सखी,

हसीं - खेली, पढ़ी - लिखी, आगे बढ़ी।।


तूने पाला मुझे बेटा बना के

सपने देखे, मुझे जिंदगी में एक मुकाम देने के,

आया वो समय, जब मैं अपने पैरों पे खड़ी हो गई

आज बाबा मै भी कंधे से कंधा मिला चलने लगी।।


बाबा एक नयी जिंदगी मेरी शुरू हुई,

सोचा अब कमा रही हूं, एन्जॉय करुंगी

कुछ अपने उपर ख़र्च करुंगी,

कुछ बैंक में जमा करुंगी,

और बाकी बचा मां के हाथ में रख कर,

तेरे कांधो से कुछ बोझ हल्का करुंगी।।


बाबा सब कुछ अच्छा चल रहा था

मैं मस्त थीं, मगन थी

पर आज मेरे साथ ये क्या हो गया?

मै अंजान थी इन सब से...


बाबा बहुत दर्द हो रहा था

जब वो नज़रे मुझे घूर रही थी

मै घबरा गई थी, पर लड़ी भी बहुत थी,

बाबा मैं अकेली पड़ गई थी, उन जानवरों के बीच,


बाबा जिस बेटी की आंखों में तूने कभी आंसू न दिए थे,

आज वही बेटी रो - रो ज़ोर - ज़ोर से चिख़ - चिल्ला रही थी,

मेरी बोटी - बोटी वो भेड़िए नोचे जा रहे थे

मेरे मुंह को दबा, मेरे हाथों को बांध

मेरे जिस्म को रोंधे जा रहे थे।।


बाबा बहुत असहनीय पीड़ा थीं,

एक के बाद एक मेरे “जिस्म" से अपनी भूख मिटा रहे थे,

कई घंटो तक हैवानियत का खेल चलता रहा,

मेरे उपर शारीरिक और मानसिक आघात बढ़ता रहा,


क्या कसूर था बाबा मेरा ?

मेरे भी कई सपने थे, मेरे भी कई अरमान थे,

आज सब ख़ाक में मिल गए

उन वहशी दरिंदों ने मुझे जिंदा ही जला दिया।।

मेरे जिस्म के साथ - साथ मेरी रूह को भी ताड़ - ताड़ कर दिया।।


बाबा मुझे इंसाफ़ चाहिए

बाबा मुझे इंसाफ चाहिए।।


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