इक और नया वर्ष
इक और नया वर्ष
हां कुछ हमने खोया
पर बहुत ज्यादा पाया
विधाता ने फिर से
जीना सिखाया
जो वाणी मेरी
डर से ज़र हो गई थी,
मंत्रों को इसने
फिर फिर गुनगुनाया
शांत हो गया था
मन की अशांति से,
इस वर्ष में मैं
फिर फिर मुस्कुराया
स्वप्न था इस बरस में
जीवन का दान दूंगा
मां,पिता और प्रज्ञा
के सपनों को मान दूंगा।
हाय रे विधाता, कुछ और ही की माया,
रंगों भरी थी होली, मैं आंसू में डबडबाया,
पर स्वीकार मुझे न्यायी
सब निर्णय तुम्हारे
करते नहीं हो कुछ भी,
बिना सही विचारे।।
हे ईश कृपा करना,
साथ मेरे रहना,
अब नया है आशियाना,
घर उसको तुम भी कहना
तुम हौसला बनाए रखना,
सत के लिए लडूंगा,
अब गलतियां करूं कम,
कोशिश सतत करूंगा।
नूतन वर्ष खुशियां लाए