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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Others

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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हँसकर मुकर गये

हँसकर मुकर गये

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आँखों की तेरी झील में जो हम उतर गये ।

कितने ही ख्वाब आज सजे औ निखर गये।।


अब तक फलक भी खूब हँसा मेरी हार पर ;

पाया जो तेरा साथ तो कुछ बन सँवर गये ।


मौला तू मेरे साथ जरा कर ये फैसला ;

मेरी वफा के फूल खिले तो किधर गये ??


जिनके लिए निसार दिए जाँ औ तन सभी ;

चाहा जो उनका साथ तो हँसकर मुकर गये ।।



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