हँसी में छुपा दर्द
हँसी में छुपा दर्द


देखो माँ मेरी कितनी हँसती है,
मेरी भूख मिटा कर,खुद भूखी रह जाती है,
सारे गम हँस हँसकर कर सह जाती है,
सच है, माँ मेरी हर पल हँसती रहती है।
शाम, सवेरे काम में लगी रहती है,
पत्थर तोड़े, या खेत में,
हर दम काम में लगी रहती है,
गोदी में लेकर मुझे,
हँस हँस कर काम करती है,
सच में, माँ मेरी,
हर दुःख में भी कितना हँसती है।
गरीबी में भी माँ मेरी,
सुख को समेटना जानती है ,
हर मुश्किल में भी
वो मुस्कुराना जा
नती है ,
सारे दर्द वो हँस हँस कर
सहना जानती है,
सच है, माँ मेरी गरीबी को भी
हँसकर संभाल लेती है।
अपने बच्चों के भविष्य की
चिन्ता उसे रहती है,
गरीब होने की भान
उन्हें होने नहीं देती है ,
परिवार के हर दुःख, दर्द
अपने ऊपर झेल लेती है,
उसके हौसले को देखकर
गरीबी भी मुस्कुरा देती है।
सच में, गरीबों के हर दर्द
उनके हँसी में छुपी रहती है
इसीलिए शायद मेरी माँ के होंठो पर
हर पल हँसी रहती है ।