हमारा गाँव
हमारा गाँव
कंक्रीट के जंगल से दूर, इक गाँव, प्रकृति का आनंद लेता है ।
फैशन की दुनिया से दूर, इक गाँव, स्वाभाविक प्रकृति का दम भरता है।
जीप ही क्या टांगे से भी, इक गाँव, सुंदर सैर सपाटा कर लेता है ।
वन-उपवन खग-विहग का, इक गाँव, कलरव हर क्षण गुँजार करता है ।
मोटर गाड़ी, धुआँ से दूर, इक गाँव, इंद्रियों को सुकून दे देता है।
पाश्चात्य सभ्यता से दूर इक गाँव भारतीय संस्कार को पोषित करता है।
इक गिलास शुद्ध दूध पीकर, यहाँ
चूहा भी शेर बन जाता है।
सुवासित बयार, पनघट की गोरी सखियों संग हँसी ठिठोली ,
मुस्काते खेतों में हलधर ,
सुकून की ज़िंदगी हर क्षण।
बहती नदी, शांत जलधार,
वो माँझी, कश्ती सुकून भरा गाँव का संसार।
ऐसे जैसे बदरा को देख मयूर पीहू पीहू करता है।
