हे! सखी
हे! सखी
हर औरत की यही कहानी
थोड़ी दुविधा बहुत सारी परेशानी
पर हे ! सखी तुम आगे बढ़ना
अपने सपने नित नए बुनना
जो सपने तुमने संजोए उनको अपने रंगों से भरना
बहुत जिम्मेदारी है तुम पे
बहुत जिम्मेदारी है तुम पे
पर खुद को भी थोड़ी अहमियत देना
थोड़ा तुम भी जीना
उम्मीदों का दामन थामे बस आगे निरंतर बढ़ना
मां बाबा के आंगन की थी
तुम एक प्यारी सी कली
पर अब किसी और के घर कि तुम हो तुलसी बड़ी
पूजा तुम को जाता है पर मन के अंदर तुमको रखा जाता नहीं
कहते तो है तुमको सब अपना
पर अपनाया जाता तुमको नहीं
चुनने का अधिकार नहीं
कुछ कहने का संस्कार नहीं
चुपचाप होकर तुम मत सुनना
थोड़ा सहना थोड़ा कहना
अपने आत्मसम्मान को ताक पर मत रखना
समेट लो सारे सपने अपनी मुठ्ठियों में
खुद के लिए भी थोड़ा जी लो
हर औरत की यही कहानी
थोड़ी दुविधा बहुत सारी परेशानी