हद से ज़्यादा
हद से ज़्यादा
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हद से ज़्यादा कुछ भी
अच्छा नहीं होता
प्यार हो या नफ़रत
दायरे में ही रहे,
वरना हमसफ़र का साथ
सच्चा नहीं होता
हद...
हक उतना रखो
जितना साथी इजाज़त दे तुम्हें,
वरना रिश्तों का जोड़
पक्का नहीं होता
हद...
उससे ज्यादा उसे जान लेना
कहाँ की समझदारी है,
प्यार चाहे तुम जितना कर लो
होगा वही जो मंजूरे-ख़ुदा होता
हद से ज्यादा कुछ भी
अच्छा नहीं होता