गुनाह
गुनाह
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छलनी कर के रूह उसकी
जिस्म पाया तो क्या पाया
बेगैरत तुझे कैसे ना
खुदा का भी खौफ आया
हवस के जुनून में
कुचल डाली एक जिंदगी
नहीं सोचा गुनाह तेरा
कभी पीछा ना छोड़ेगा
इंसान की खाल में
बन के दरिंदे घूम रहे यहां
कर दो संहार इनका
कह रही यह दुर्गा मां