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Rashmi Singhal

Others

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Rashmi Singhal

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गुलाबी सी ठंडक

गुलाबी सी ठंडक

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गुलाबी सी ठंडक का, है गुलाबी सूरज

मानो के है बड़ा ही, आफताबी सूरज,


चढ़ रहा लालिमा का ताज धीरे-धीरे

बैठा है आसमां पे, बनके नवाबी सूरज,


हरेक कला प्रेमी को कर रहा, आकर्षित

है आज सुन्दरता में बेहीसाबी सूरज,


उठा रही है शरद् ढेरों सवाल इस पर

बनेगा आज खुद ही अपना जवाबी सूरज


उगता है रोज ही, ये हरा करके तम को

डीगता नहीं अपने, पथ से जरा भी सूरज।


     


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