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Kumar Vikash

Others

5.0  

Kumar Vikash

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गलियाँ

गलियाँ

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अच्छी लगती थी कभी गलियाँ वही

जिसमें तुम रहा करती थी ,

पाने को एक झलक तुम्हारी चाहने वालों

की भीड़ लगा करती थी !

वो तुम्हारे घर की खिड़की का पर्दा जब

हवा से लहराया करता था ,

देखने को तुम्हारी एक झलक मैं दीवानों

सा तड़प जाया करता था !

अब न वह मौसम रहे और न वह बहारें

रहीं ,

जब सनम हुआ करता था एक और

उसके दीवाने कई !

अब तो शाम से ही मयखाने में महफिल

सजा करती है,

बोतल हुआ करती है एक और तुम्हारे

चाहने वालों की भीड़ लगा करती है !!


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