गलियाँ
गलियाँ
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अच्छी लगती थी कभी गलियाँ वही
जिसमें तुम रहा करती थी ,
पाने को एक झलक तुम्हारी चाहने वालों
की भीड़ लगा करती थी !
वो तुम्हारे घर की खिड़की का पर्दा जब
हवा से लहराया करता था ,
देखने को तुम्हारी एक झलक मैं दीवानों
सा तड़प जाया करता था !
अब न वह मौसम रहे और न वह बहारें
रहीं ,
जब सनम हुआ करता था एक और
उसके दीवाने कई !
अब तो शाम से ही मयखाने में महफिल
सजा करती है,
बोतल हुआ करती है एक और तुम्हारे
चाहने वालों की भीड़ लगा करती है !!
