गजल
गजल
पहाड़ से दर्द को अपने दिल में छुपाते हो।
आंखें हो नम मगर फिर भी मुस्कराते हो।।
नकाब पहनकर निकलते हो घर से क्यूं।
जो है सच दिल में क्यों नहीं बताते हो।।
गहरी सागर से भी ये तुम्हारी आंखें।
मैंने देखा है जब मुझसे बतियाते हो।।
आज की रात पहलू में जरा बैठो तुम।
चन्द लम्हे सुकूं के क्यों नहीं बिताते हो।।
पुरुष हूं रोना शोभा मुझे देता ही नहीं।
सोचकर दर्द को तुम क्यों पीये जाते हो।।
आज कह दो जो भी तुम्हारे दिल में है।
धैर्य की मूरत तुम क्यों बने जाते हो।।
बड़ा कोमल वो दिल जो बसा तुम्हारे सीने में।
सख्त सी परत जानबूझकर चढ़ाते हो।।
गोद में रख दो और खोल दो वो राज तुम
मैं आईना हूं क्यों मुझसे कुछ छुपाते हो।।
आज बस जाने दो धड़कनों में जान मेरी।।
जानती है "सृजिता" कि हमें चाहते हो।।
