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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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हमने देखा शहर के हालात कैसे कैसे ?

लोगों की तक़दीर और जज़्बात कैसे कैसे ?


बेसमय सब साथ रहते वादें बातों से अपने ,

पर बदल जाते समय पर आवाज़ कैसे कैसे ?


लौटकर सत्ता सियासत में जो दुबारा आ गया ,

ओ देने लगा अब लोगों से बयान कैसे कैसे ?


हाथ से जिसके निवाला मुँह तक गया नहीं ,

ओ बैठें बैठें देखता है ख़याल कैसे कैसे ?


पा गया परिणाम अपनें फलसफों का जो ,

देखिए चेहरे पर उसके मुस्कान कैसे कैसे ?


हँसी पर जिनके कभी हँसता था क़ायनात ये ,

आज बैठें है दालान में ओ उदास कैसे कैसे ?


दौलत शोहरत ये अमीरी चार दिन की चाँदनी ,

फ़िर मद में इसके करता क्यूँ बात कैसे कैसे ।

 


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