फ़रेबी इश्क़....!
फ़रेबी इश्क़....!
1 min
238
मोहब्बत का
क्या क़सूर
जो तुमसे हो गई.... ,
मेरी ज़िन्दगी
मुझसे ही
खो गई.... ,
अब इल्ज़ाम भी दूं तो
क़िस अभिशाप को....
गुनेहगार मान लूँ कैसे
मैं अपने ही आप को.... ,
बस एक
उम्मीद ही बाक़ी थी,
चाहत की....
फ़िर दिल से
दिल का मेल होगा....
मिलना-बिछड़ना,
हक़ीक़त या कोई खेल होगा....
फ़रेबी इश्क़ था....
हम भरोसा कर बैठे... !