एक दिन अनजाने के संग
एक दिन अनजाने के संग
कभी वक्त काटना पड़े कहीं, तो हम हो जाते हैं बड़े परेशान।
अपने स्वभाव में जोड़ें वे उपाय, इंतजार करना होवे आसान।
दो लोग रहें जब पास-पास, ना वे हों परिचित यानी अनजान।
तब सुखद संग होवे कैसे? परस्पर सहयोग बने अपनी पहचान।
एक दिन भटका कुछ ऐसा ध्यान, जाना था मुझको अस्पताल।
पहुॅंचना था मुझको दो बजे वहॉ॑, सुबह पहुॅंच गया नहीं रहा ख्याल।
वापस आकर फिर जाऊं मैं, मन से निकाल दिया था मैंने तो ख्याल।
सज्जन एक और मिले मुझको, उनका भी था मेरा जैसा ही हाल।
अफसोस जताया हम दोनों ने, सान्त्वना भी परस्पर दे डाली।
यह समय बिताएंगे कैसे? संस्मरण सुनाने की मुहिम चला डाली।
आप बीती कुछ एक कहानी सुना, रिश्तों - मित्रों की भी कह डाली।
इस छोटी अनजानी भेंट अब तो, मित्रता में हमने बदल डाली।
निज परिवारों के परिचय, ले-देकर के नंबर और पते कर नोट लिए।
संपर्क बनाए रखेंगे हम दोनों, शाम को घर चलते समय ये वादे किए।
वादे हम अब अब भी निभाते हैं, मिलते हैं मन में अति आनन्द लिए।
हम अब एक दूजे के सहायक हैं, और हम हैं एक मिसाल औरों के लिए।
