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Surendra kumar singh

Others

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Surendra kumar singh

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एक बार फिर

एक बार फिर

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एक बार फिर

अंधेरे में बैठकर बनायी गयी

हमारी तस्वीर

जैसे कि आसमान में सुराख,

जैसे कि उफनते हुये समुन्दर का

शांत होकर आईने बे बदल जाना,

जैसे कि समय की कहानी का

आवाजों में व्यक्त होना।


यथार्थ में बदल गया है

मानने और न मानने की

अक्सर वजह एक होती है

जैसे कि चित्रकार छिप गया है

अपने चित्र में

औऱ वक्ता खो गया है

अपनी आवाज में


रास्ता तो है

चित्रकार और वक्ता से मिलने का

लेकिन चलने से बेहतर

सोचना समझते है लोग

और समझने से बेहतर बहस करना

अब इस उलझन का

क्या करें हम।


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