एक आहट- सांसो की
एक आहट- सांसो की
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एक माँ के चश्मे पे लगी ओस
जब भारी सांसो की आहट से
छटने लगी तो दिखे,
उसके दो आंसू,
मैंने पूछा, क्या हुआ ?
आसमान की और देख, वो बोली,
कुछ नहीं, पता नहीं, क्यों !
यह हर रोज , यूँ ही, सूर्योदय मे निकलते है
और संध्या से पहले, वापिस आ जाते है,
तो, मैंने पूछा,
मालूम है, ये कहाँ जाते है ?
वो बोली,
एक कहता है, अपनों के पास
और
दूसरा कहता है, अपनों के साथ,
उत्सुकतावश मैं पूछ बैठा, क्या यह कभी इकट्ठे नहीं होते ?
वो बोली, होते है ना,
मेरे पास और साथ, हर रोज़, रात भर I
