दर्द
दर्द
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ना लफ़्ज़ों में,
ना आँखो में,
ना साँसों में,
फिर भी है।
ना आँचल में,
ना दुपट्टे में,
ना बुर्खे में,
फिर भी है।
ना मकान में,
ना बंगले में,
ना बिल्डिंग में,
फिर भी है।
ना मयखाने में,
ना क्लब में,
ना डिस्को में,
फिर भी है।
ना जश्न में,
ना त्योहार में,
ना जलसे में,
फिर भी है।
ना रिश्तों में,
ना मित्रों में,
ना परिवार में,
फिर भी है।
अनकहा सा दर्द,
अनसुना सा दर्द,
कहीं तो है, दर्द,
छलक नहीं पाता,
है वो बेइंतहा दर्द,
हर मुस्कराहट में।