दर्द का रिश्ता
दर्द का रिश्ता
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दिल तो हमारा सब के लिए पिघल जाता है,
सब पता नही क्यों खुद को खास समझ लेते हैं,
कितना भी समझा लो, दूर तो हो ही नहीं पाते हैं,
बस अपने हर एहसास में छिपा कर रख लेते हैं।
आईना देखते ही तस्वीर हमारी ही देख पाते हैं,
जीवन का हर शख़्स तो वो भुला ही देते हैं,
हमारे चेहरे को छोड़ सब को अजनबी बना लेते हैं,
अपनी दीवानगी का सबूत शायरी में ही दे जाते हैं।
कैंसा दीवानापन है, हर पल कैद में ही रख लेते हैं,
हम भागते भागते डरते हर बार नज़र आते हैं,
मगर भागना कैसा, यों घबराना कैसा, समझ लेते हैं,
क्या बुरा करते हैं, उन के दर्द को ग़र अपना लेते हैं।