दोस्तों के साथ एक दिन
दोस्तों के साथ एक दिन
दोस्तों के साथ एक दिन भी इतनी शानदार लगती है,
पुराने यादों की सोई हुई नींद तब जगती है।
बचपन का वो साथ मिलकर डाँट खाना,
वो बीच कक्षा में एक दूसरे का टिफिन चोरी-छुपे खाना।
फिर एक दूसरे से झगड़कर कुछ समय तक मौन व्रत ले लेना,
फिर रोते रोते मासूमों की तरह झपक के गले से लगा लेना।
कहानी दोस्ती की इतनी सुहानी होती है कि भुलाने से भुलाए नहीं जाते,
तुम जैसा यार हम जैसे नाचीज़ को आखिर कहाँ और मिल पाते।
वो तीन तीन स्कूटी पर सवार होकर मौज़ के वो लम्हें आज तक हँसाते हैं,
हँसाते हँसाते फिर कुछ यादों की बूंदों को आँखों से गिराते हैं।
नाराजगी की वजह सुनकर अब हम मुस्कुराते हुए सोचते हैं,
आखिर बचपन में कितने नासमझ और मासूम हुआ करते थे।
उस एक दिन की मिलन में बचपन की यादों को हम फिर जी लेते हैं,
दोस्तों के संग फिर कुछ लम्हें बच्चे बनकर गुज़ार देते हैं।