दिल के तार, सावन के साथ
दिल के तार, सावन के साथ

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ये मौसम की बारिश,
ये बारिश का पानी
वो बचपन के किस्से
और बूंदों की कहानी
कागज़ की कश्ती पर
वो नज़रे अभिमानी
एक डूबी तो क्या,
दूसरी बना कर तैरानी
मिट्टी की सौंधी महक,
प्रकृति की छटा नूरानी
माँ के हाथ के पकोड़े,
साथ में चाय की चुस्की भी लगानी
ये मौसम की बारिश,
ये बारिश का पानी
आज की दौर में अलग है ज़ुबानी
ना ही वो कश्ती ना वो बूंदे पुरानी
क्योंकि विषैली है वर्षा
और यह पीढ़ी सयानी
इसलिए अच्छी लगती थी
वो बचपन की बारिश
और उसकी बूंदे सुहानी।