देश मेरे
देश मेरे
क्या लिखूं तुझ पर ओ जान, ओ देश मेरे,
भाव बहुत हैं और अल्फ़ाज़ कम, कलम कहती है।
लिखती नहीं कलम सजदा करती है,
तेरे आगे मेरी नज़र झुका करती है।
ये तिरंगा प्यारा जो शान से लहराता है,
उसकी हर लहर शहादत की कहानी कहती है।
भरा पड़ा है इतिहास का हर पन्ना ख़ून से,
कुरबानियों की गाथा कम न होती है।
मर मिटे कई तो कुछ अब भी मर मिटते हैं,
ओढ़कर शान से तिरँगा शहीद सो जाते हैं।
कोई सीने पर गोली खाता है तो कोई फांसी पर झूल जाता है,
तेरी आन पर हर आशिक़ अपनी जान गंवाता है।
ओ देश मेरे मुझे भी प्यार है तुझसे मैं भी हूँ तेरी आशिक,
दुआ है रब से सदा नेक कदम चलूँ तेरा शीश कभी न झुकने दूँ।