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देश हमारा बेहाल

देश हमारा बेहाल

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देश में गूँज रहा जो नारा

क्या होगा उसका किनारा

जो टूट के बिखर गया

क्या रह गया सहारा।


हिंदुत्व की बात करें

पर मानवता भूले हैं

मुठभेड़ की लौ में

ख़ुद को भी वसूले हैं।

गद्दारी ख़ुद करते हो

सत्ता भूख की निठल्ले

जनता को गुमराह बनाकर

हजम कर जाते तुम नल्ले।


कुछ तो अब शर्म करो

शाहीन बाग की अर्श पर

शक्ति तुमको दिखती नहीं

गिर के पड़ जाओगे फर्श पर।


खून बहाए सेनानियों ने

तब पाई आज़ादी है

अब तो भूख है सत्ता की

रह गयी बस बर्बादी है।

सिसक रही भारत माता

आँखें जरा खोलो तुम

प्रकृति आपदा जग में

अब क्या करोगे बोलो तुम।



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