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SHWETA GUPTA

Others

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SHWETA GUPTA

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डर रही हूँ मैं

डर रही हूँ मैं

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हर तरफ आगज़नी है, डर रही हूँ मैं,

आज घर में भी अपने, डर रही हूँ मैं।


हिंसा की है इंतेहा, अहिंसा भूल गए,

के बाज़ार जाने से भी, डर रही हूँ मैं।


कहीं बस जली, कहीं गोली है चली,

के अखबार देखते हुए, डर रही हूँ मैं।


न पूजा ही की है, न की नमाज़ अदा,

मज़हब के नाम से भी, डर रही हूँ मैं।


वतन है मेरा बना, वतन के लोगों से,

वतन की बात उठे तो, डर रही हूँ मैं।


चुप हो, न कर कोई आवाज़ 'श्वेता',

कलम उठाते हुए भी, डर रही हूँ मैं।


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