दामिनी
दामिनी
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जब जुल्मों की जंजीरों
को तोड़कर
अपने सपनों की खातिर
लड़ती है वो अपनो से
समाज के लोगो से
बन जाती जब वो चिंगारी
कहलाती जब वो दामिनी
अपने स्वाभिमान को जिंदा
रखने के लिये
सहती है न जाने कितनी
तकलीफें
फिर भी होठों पर उसके कभी
शिकायत नही होती
बिखरकर भी जोड़ लेती खुद को
कहलाती जब वो दामिनी
जब वो पहचान लेती अपने मे
छुपी शक्ति को
पार कर लेती अनगिनत बाँधाओं
को
अडिग रहती अपने कर्तव्य पथ
पर
समाज का नवनिर्माण करती
कहलाती जब वो दामिनी।