स्त्री का प्रेम
स्त्री का प्रेम
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स्त्री जब प्रेम में
होती है
खो देती हैं खुद को
उसके लिये
जिससे वो अथाह
प्रेम करती है
भूल जाती है सब
कुछ
याद रहता है बस वो
शख्स
जिसकी वो दीवानी बन
जाती है
हर बार माफ कर देती है
उसकी गलतियाँ
जो उसके हृदय में बस
जाता है
प्रीत में रहकर सारी रीतों
को छोड़ देती है
देखा है स्त्री को प्रेम में
अपना सर्वस्व न्यौछावर
करते हुये
और अनंत तक राधा मीरा
बनते हुये।