दादाजी की बातें
दादाजी की बातें
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बचपन की वह बातें प्यारे
कहा करते थे दादा जी हमारे
बाप न भैया बेटा सब कुछ है रुपइया
उनकी बातें अच्छी थी जी
समझ न पाया सच्ची थी जी
लेकिन हम तो बच्चे थे जी !
दादाजी की बातें प्यारी
आज ही लगती सच्ची सारी
कहते थे बातें अच्छी सारी
अपनी भी एक किस्सा है जी
महाभारत सा हिस्सा है जी
घटना सारा सच्चा है जी !
एक रात यूँ ऐसा हुआ जी
मानो यूँ गृह नाश हुआ जी
बाबूजी का स्वर्गवास हुआ जी
दादाजी को कष्ट हुआ जी
उम्मीदें मानो पस्त हुआ जी
घटना मानो जबरदस्त हुआ जी !
हां एक था पोता बचा जी
उम्र शायद थी 8 वर्ष जी
आंखें नम और प्रश्न बहुत जी
दादाजी भी बहुत त्रस्त जी
चिंताओं से बहुत ग्रस्त जी
अपने में ही व्याकुल जी !
महाभारत के किस्से में जी
सार्थी बने थे श्रीकृष्ण जी
अर्जुन के मार्गदर्शक थे जी
फर्क अपितु बस इतना था
कुरुक्षेत्र में मैं खड़ा था
कृष्ण परंतु बुआ बनी जी
अर्जुन बन मैं स्वयं खड़ा था !
अपनों के तलवारों से जी
घाव अभी तक नहीं भरा जी
लेकिन उनके विचारों से
आज फिर कुरुक्षेत्र सजा जी !
दादा जी की पुत्री बुआ जी
सच्ची निकली सार्थी जी
कुरुक्षेत्र में तब टीका जी
लेकिन फिर आ बातें अटकी
शिक्षा-दीक्षा पूरी कर ली
आयु जब 21 पूरी कर ली।
घर को लेकर बड़ा युद्ध जी
चाचा, भाई सब धृतराष्ट्र जी
दादाजी का पेंशन
गृह युद्ध का कारण है जी
दादाजी मुश्किल में है जी
पितामह जो बने हैं भैया
कुरुक्षेत्र का युद्ध
पेंशन वाली रकम है भैया !
बहुत शोर है पोता को लेकर
खड़ा है पीठ पर खंजर सब लेकर
पोता कहीं दबा पड़ा जी
अपने कितने ढूंढ रहे जी !
अपराध फिर क्यों मेरी " कविता " !
कुरुक्षेत्र के इस अंश में
बुआ छोड़ सब कौरव थे भैया
अपने ही क्यों सब दुश्मन थे भैया ?
मेरे इस संघर्ष में
अग्रज भ्राता उपदेशक थे जी
फूफा जी संरक्षक थे जी।
कौरव बनाया पैसा है जी
हस्तिनापुर के वे राजा है जी
बाकी सब रिश्ते पांडव है जी !
बातें सच्ची थी दादा जी की
रिश्ते सब झूठे हैं जी
खेल है सब पैसे का जी !
अनमोल है यह रिश्ते जी
पतंगो जैसे इसके किस्से जी
बांध रखो जी डोर तुम इसकी
नहीं होगी समस्या जी
पैसे वाली सपन टूटेगी
तब काम आएंगे यह रिश्ते जी !
मैं तो अकबर हूं जी भैया
सिंहासन के सब अपने ही दुश्मन !
मेरे दादाजी की बातें
दुखों से भरी है रातें
शायद ईश्वर के वरदान से
दादाजी मेरे चिरंजीवी जी !
दुःख है ना मानो सहेली जी
हम हैं ना बहुत अकेले जी !
बहुत अकेली उलझन है जी
मेरी सहेली दिल के अंदर है जी
यह किस्सा थी अबतक कि जी।
जब लिखा था आपबीती जी
आगे का तो पता नहीं है
देखेंगे परिस्थिति जी !
खत्म हुई जज़्बात जी
छोड़ो अब मेरी बात जी
अब कर लो कविता का पाठ जी !
मेरी एक है विनती जी
किस्सा हो गए खत्म जी
फिर कभी सुन लेना संग जी !
एक बात भूल गया कहना जी
सुनकर जाना भाइयों - बहनों जी
बात कुछ अटपटी सच्ची है जी
थोड़ी अनसुनी पक्की है जी
"बाप न भैया बेटा सबकुछ है रुपइया।"