चिट्ठी का अस्तित्व
चिट्ठी का अस्तित्व
चिट्ठी का अस्तित्व ढूंढने हमने खोली अलमारी,
बेदम उदास गिरी चिट्ठियां, नीली, पीली मतवाली !!
चलो तकनीकी जमाने मे, सुध तो ली तुमने हमारी,
बोल पड़े, शुक्र मानो, शब्दसिन्धु है धारा शब्दों की,
याद दिलाई हमको हमारे प्यारे से अतीत की,
आज दिवंगत माँ, पापा की यादों में हम जी लेंगे !!
पहली नजर पड़ी "सदा सौभाग्यवती रहो",
मेरी माँ के हाथों के अनमोल शब्द, कुछ धुंधले,
मटमैले से शब्दों में ममता का आँचल लहराया,
धुंधले शब्दों में झांक रही पापा की तस्वीर दिखी !!
फिर यादों की जो हवा, सूखे गुलाब तक पहुँच गयी,
मीठी यादों के अहसास में सुरमई रात गुजरने लगी,
दीवानी सी हालत थी, हम खोये थे रंगरलियों में,
तभी फ़ोन में मैसेज आया, और वर्तमान में पहुँचे !
चिट्ठी का अस्तित्व पा गए हम अपनी अलमारी में !
