।। चाय ।।
।। चाय ।।
कितनी बिनकही बिनसुनी
रही जो बस इस मन की आस है
दूरियाँ चाहे कितनी रही हों
दिल तो फिर भी उनके पास है
चुस्कियों के बीच जब अनायास
टटोलता मन लगाता कयास है
सच कहूं तुम्हारी याद के साथ
महक चाय की बस एक एहसास है ।।
ठोकरें लगी हों कितनी कदमों पे
या फिर दिल हुआ लहूलुहान है
उम्मीदें टूटी भले बार बार अपनी
पर हौसलों में अब भी उड़ान है
लाख कहता रहा जमाना हमको
ये फन मेरा तो बस एक गुर्बा है
पर हमने तो रखा फलसफा ये ही
हर चुस्की चाय की एक तजुर्बा है ।।
हो चाहे दिन भर की थकन ये
या फिर जद्दोजहद जमाने की
कुछ तो भागना सपनों के पीछे
कुछ जिद फर्ज अपने निभाने की
मेरी हर तड़प हर बैचैन ख़ाहिश
और इनसे झुलसता हुआ जुनून है
जिला देती है रोज मेरी सांसों को
शाम की चाय ही वो एक सकून है ।।
उनके कहकहों के बीच कहीं
चुनौतियों की भी बारिश है
कुछ लम्हे हैं जरा हक़ के मेरे
कुछ में शामिल थोड़ी गुज़ारिश है
अनिश्चितता अनहोनी पराजय से परे
इन सब में बस यही तो खास है
यारों का साथ न तुझे गिरने देगा
हर चाय का प्याला एक विश्वास है ।।
कौन अपना है कौन पराया तुझसे
जग में साथ रहता नहीं हमेशा साया
हर मुस्कराहट के पीछे हैं ग़म बहुत
हर भीड़ में खुद को है अकेला पाया
अनुभवों के कितने ही ऐसे सहेजे
अनगिनत पत्तों की जो दी आहूति है
जिंदगी के इन उबलते अरमानों में
चाय का हर घूंट एक अनुभूति है ।।