बसंत ऋतु
बसंत ऋतु
1 min
344
मन मार रहा है किलकारी
इक अजब सी मस्ती छाई है।
तरूवर में आई नई नव्या
मानो नवयुवती मुस्काई है।।
सरसों फूली पीली पीली
जैसे धरा चुनर लहराई है।
कोयल बोले यों कुहू कुहू
ज्यों प्रिय संदेशा लाई है।।
बाजे बाजे अब घर घर में
मां ज्ञानदायिनी आई है।
फसलों में लदी रही बाली
ज्यों अन्नपूर्णा माई है।।
अब हुआ सरोवर ललिमामय
कण कण में लाली छाई है।
ये मधुरिम बसंत ऋतु अबकी
बस सुख संदेशा लाई है।